Saturday, October 24, 2009

कुछ मीठी यादें ~ दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे

सभी जानते हैं चवन्नीछाप हिंदी का मशहूर ब्लॉग है, समय, सिनेमा और संवेदना को समझने के लिहाज से. इस ब्लॉग के मॉडरेटर व चर्चित फ़िल्म समीक्षक अजय ब्रह्मात्मज जी ने दिलवाले दुल्हनिया ले के चौदह साल पूरे होने पर कुछ लिखने-यादें सांझा करने का न्योता दिया. तो उनके आदेश पर कुछ यादें लिखी हैं| चवन्नी से ही साभार यहां वही पीस उद्धृत है.. आपके कमेंट्स का इंतज़ार रहेगा


Friday, October 23, 2009
DDLJ ने लाखों सपने दिए,लेकिन...
-आकांक्षा गर्ग

आकांक्षा बंगलुरू में रहती और एक फायनेशियल कंपनी चलाती हैं।छठी कक्षा से कहानी-कविता लिखने का शौक जागा,जो जिंदगी की आपाधापी में मद्धम गति से चत रहा है।समय मिलते ही कुछ लिखती हैं। अभी निवेश के गुर सिखाती हैं और मदद भी करती हैं।आप उनसे iifpl@yahoo.com पर संपर्क कर सकते हैं।

१९९५ में जब यह फिल्म रिलीज़ हुई तब कॉलेज में आये- आये थे । फिल्मो से कुछ एलर्जी सी थी।लगता था टाइम वेस्ट मनी वेस्ट। मेरे फ्रेंड्स ने मेरा नाम रखा हुआ था किताबी कीडा, क्यूंकि लाइब्रेरी में सबसे ज्यादा टाइम गुजारना मेरा पसंदीदा शगल था । कॉलेज की सभी फ्रेंड जैसे इस मूवी के पीछे पागल हो गयी थी . उनका हॉट टोपिक हुआ करता था इस मूवी का डिस्कशन करना । कई बार उन्होंने कहा जाने के लिए लेकिन उन सब के रोज़-रोज़ के डिस्कशन ने इतना ज्यादा बोरियत कर दी तो कभी मूड ही नहीं हुआ । फ्रेंड्स ने नए- नए नाम रखने शुरू कर दिए। किसी ने कहा I am unromantic। किसी किसी ने तो ये भी कहा that I love the four letter word, HATE and I hate the four letter word,LOVE from the deep of my heart । अब मैं क्या करती, सबका अपना -अपना नजरिया होता है। सब उसी के हिसाब से सोचते हैं । मेरी प्रॉब्लम शायद यही थी कि मैं सपनो में भी लॉजिक ढूँढा करती थी। . मुझे हर चीज़ logical ही चाहिए . fantasy के लिए दिमाग में कोई जगह ही बाकी नहीं थी । लेकिन फ्रेंड्स वो तो फिल्म के पीछे पागल थी। शायद ये वो वक़्त था जब हर लड़का खुद को राज समझता था और हर लडकी को आईने में अपनी इमेज में सिमरन नज़र आती थी ।

आखिर एक दिन सबकी बहुत जिद पर हम भी चले गए फिल्म देखने । अच्छी लगी फिल्म, लेकिन as usual my habbit logic से कोसो दूर लगी। मूवी का लास्ट सीन अमरीश पुरी टिपिकल इंडियन पिताश्री और ट्रेन जा रही है सस्पेंस बढ़ रहा है । जिन फ्रेंड्स ने १० -१० बार पहले देखी है मूवी वो भी रोने के लिए बस जैसे तैयार ही बैठी हैं। अरे भाई all well educated ho इतना सस्पेंस किस लिए चैन पुलिंग करो, टी टी को ५० रु दो आराम से ले के जाओ हीरोईन को हाहा फिर भी अंत भला तो सब भला ।
बाहर आने के बाद सबने पूछा कैसी लगी फिल्म, हमने कहा अच्छी थी । मैंने देखा वो लोग खुश हैं अपने सपनों की दुनिया में . उन्हें लगता है कि दुनिया बस ऐसी ही होती है। एक उम्मीद होती है कि कुछ भी हो अंत में सब कुछ ठीक हो ही जायेगा ।कुछ खयालात कुछ सपने इतने मीठे और इतने नाज़ुक होते हैं कि उन्हें तोड़ने का दिल ही नहीं करता और ऐसे सपने तोड़ने भी नहीं चाहिए तो फिर मुझे लगा कि मुझे भी कोई हक नहीं बनता कि एक कड़वे सच के पत्थर से मैं उनके मीठे सपनो के महल को तोड़ दू ।

फिल्म ने लोगो को सोचने के लिए जीने के लिए लाखों सपने दे दिए। वाकई ऐसी ही तो होती है एक लड़की की जिंदगी। हमेशा सबके लिए सोचते -सोचते ज़िन्दगी ना जाने कहाँ निकल जाती है कि अपने लिए सोचने का वक़्त ही नहीं रह जाता।खुशकिस्मत होते हैं वो लोग जिनके सपने पूरे होते हैं । सपने जो अरमानों की तस्वीर होते हैं। सभी अपने सपनो को पूरा करना चाहते हैं ।कुछ सपने पूरे हो जाते हैं, कुछ पूरे नहीं होते, लेकिन एक चीज़ जो इस फिल्म ने दी सबको सोचने के लिए वो ये कि सपने देखना कभी छोड़ना नहीं चहिये ।

कुछ सपने बरक़रार रहें तो ही अच्छा, क्योंकि सपने हैं इसीलिए दिल में यकीन है कि एक दिन वो पूरे जरुर होंगे क्या बुरा है अगर मेरी फ्रेंड्स और उनके जैसे लाखो और लोग इसी सपने के साथ जिए और दूसरों को जीना सिखाएं
मैं अपने रियलिटी की दुनिया में ही बहुत खुश हूँ । बस कभी- कभार ऐसे सपनों भरी कहानियों में खो जाती हूँ और फिर आँख खुलते ही उन सपनो को अपने दिल के किसी कोने में छुपा लेती हूँ । कहानी की किताब को बंद कर लेती हूँ । कुछ कहानियां होती ही हैं इतनी खूबसूरत कि उन पर सच्चाई की तलवार नहीं चलनी चहिये। बस उन कहानियों के साथ कुछ हसीन पल बीत जाएं, यही बहुत है ।

कहानियां हमारे ज़ज्बातों की जीती जागती निशानियाँ होती हैं या फिर यूँ कह लीजिये कि शायद जिंदगी का ही अक्स होती हैं ,पर कल्पना के रंग भरकर इनको एक ख्वाब में तब्दील किया जाता है । इसमें कोई बुराई नहीं कि इंसान कुछ देर के लिए सच्चाई की दुनिया छोड़ कर कहनियों की दुनिया में खो जाए, क्योंकि कहानियों में सब ठीक होता है। end में सब ठीक होना ही पड़ता है और इसी से उम्मीद बनती है कि जिंदगी की इस असली ज़ंग में हम जरुर जीतेंगे ज़ंग जो बाहर वालों से है , सिस्टम से है या फिर शायद अपने आप से ..............................


 आप यह पोस्ट अजय जी के ब्लॉग पर भी पढ़ सकते हैं जिसका लिंक है -
http://chavannichap.blogspot.com/2009/10/ddlj_23.html

2 comments:

  1. कहानियां हमारे ज़ज्बातों की जीती जागती निशानियाँ होती हैं या फिर यूँ कह लीजिये कि शायद जिंदगी का ही अक्स होती हैं ,पर कल्पना के रंग भरकर इनको एक ख्वाब में तब्दील किया जाता है


    Bahut Khoob Akanksha Ji... :-)

    Jai Jinendra :-)

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  2. कहानियां हमारे ज़ज्बातों की जीती जागती निशानियाँ होती हैं या फिर यूँ कह लीजिये कि शायद जिंदगी का ही अक्स होती हैं ,पर कल्पना के रंग भरकर इनको एक ख्वाब में तब्दील किया जाता है । इसमें कोई बुराई नहीं कि इंसान कुछ देर के लिए सच्चाई की दुनिया छोड़ कर कहनियों की दुनिया में खो जाए, क्योंकि कहानियों में सब ठीक होता है।

    आकांक्षा जी!
    पोस्ट के माध्यम से आपने बढ़िया सन्देश दिया है।
    बधाई!

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